प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग ने पिछले साल अक्तूबर में रूस के कजान में मुलाकात की थी। इस बैठक में मतभेदों को खत्म करने और सीमा विवाद के हल पर सहमति बनी थी। अब चीन के तियानजिन में हुई मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों में आई सकारात्मक गति और स्थिर प्रगति का स्वागत किया। इस बात पर सहमति बनी की चीन और भारत विकास में एक-दूसरे के सहयोगी हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं। दोनों नेताओं ने मतभेदों को विवादों में नहीं बदलने पर भी जोर दिया।
बैठक में यह भी कहा गया कि भारत और चीन के बीच स्थिर संबंध और सहयोग न केवल दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों के बीच आपसी सम्मान और हित, बल्कि 21वीं सदी की बहुध्रुवीय विश्व और एशिया के लिए जरूरी है। आपसी सहयोग दोनों देशों के विकास और वृद्धि में योगदान देगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शी जिनपिंग के सामने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों के बीच संबंधों के निरंतर विकास की खातिर सीमा पर शांति होना जरूरी है। मोदी के साथ शी जिनपिंग ने भी पिछले साल सीमा से सेना की वापसी और इसके बाद सीमावर्ती इलाके में शांति और सौहार्द बनाए रखने पर संतोष जताया।
द्विपक्षीय बैठक में सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और दोनों पक्षों के स्वीकार्य समाधान पर प्रतिबद्धता जताई। कहा गया कि यह दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और जनता के हित में यह आवश्यक है। दोनों नेताओं ने अगस्त में विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में लिए गए अहम निर्णयों की न केवल सराहना की, बल्कि उनके प्रयासों को आगे भी समर्थन देने पर सहमति व्यक्त की।
मोदी और शी जिनपिंग के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा और पर्यटक वीजा की बहाली के आधार पर सीधी फ्लाइट व वीजा सुविधा शुरू करने पर भी सहमति बनी है। दोनों नेताओं ने यह बात स्वीकार की है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में भारत और चीन की भूमिका अहम है। द्विपक्षीय व्यापार और निवेश विस्तार के अलावा व्यापार घाटे को काम करने के लिए राजनीतिक और रणनीतिक दिशा में आगे बढ़ने पर बल दिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत और चीन सामरिक स्वायत्तता के पक्षधर हैं। हमारे संबंधों को किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। दोनों नेताओं का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद, निष्पक्ष व्यापार, क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों और चुनौतियों पर साझा आधार विकसित करना जरूरी है।